शिकवे - सौम्या राय द्वारा लिखित
- soumya ray
- Oct 10, 2022
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Updated: Oct 11, 2022
सोचती हूँ ,
ये जो शिकवे हैं कुछ कहे कुछ अनकहे से ,
खुद से हैं या ग़ैर से ।
जो नज़दीक हैं वो ग़ैर कहाँ ।
और जो ग़ैर है उससे शिकवा कैसा।।
फिर भी ये दिल बेचैन है ।
और शिकवे हैं कभी खुद से, कभी अपनो से, और कभी बस ख़ामख़ा।
क्यों शिकवे हैं खुद से या अपनो से, या बस किसी और के कुछ कह देने से ?
अगर आसान नहीं किसी गैर की बात को तवज्जो ना देना,
तो क्या ये कभी मुमकिन हो की खुद से या अपनों से नाराज़ ना हों?
शिकवे खुद से या अपनो से वाजिब है कि नहीं,
ये अब कौन कहे ।।
पर खुद से या दूसरों (अपने हों या गैर) से अपेक्षा ना रखना भी मुमकिन है क्या भला?





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